۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
अल्लामा राजा नासिर

हौज़ा / ख़ालिके कायनात के चुने हुए बंदो ने दीने इलाही की सर बुलंदी और दिफा के लिए अपने घरबार कुर्बान कर यह साबित कर दिया कि सत्य और धार्मिकता के लिए सब कुछ लुटाा जा सकता है लेकिन सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा जा सकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामाबाद / मजलिस-ए-वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान के केंद्रीय महासचिव अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफरी ने रौज़े आशूरा के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि रोज़े आशूर बंदगी और इताअत की अज़ीम मेराज का नाम है। चुने हुए बंदो ने दीने इलाही की सर बुलंदी और दिफा के लिए अपने घरबार कुर्बान कर यह साबित कर दिया कि सत्य और धार्मिकता के लिए सब कुछ लुटाा जा सकता है लेकिन सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हुसैनियत हक़ और सच्चाई के मार्ग का नाम है जिसके राही को बड़ी कठिनाइयों और परेशानियो का सामना करना पड़ता है। अल्लाह ताला की खातिर बे दरेग कुर्बानीया देनी पड़ती है लेकिन हक़ पर आंच आने नही दी जाती।

उन्होंने कहा कि यज़ीद इस्लाम के असली रूप को विकृत करना चाहता था। इमाम आली ने अपने नाना के धर्म का बचाव किया और यज़ीद को उसके बुरे इरादों से रोका। इमाम आली मकाम ने अपनी कुर्बानीया देकर दुनिया को वास्तविक अर्थ से परिचित कराया।

उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में यज़ीदी विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है। यहूदी और ईसाई इस्लाम का चेहरा बदलने के लिए मुस्लिम जैसे एजेंटों का इस्तेमाल कर रहे है। इस्लाम के इन दुश्मनों को हुसैनी के दृढ़ संकल्प से ही हराया जा सकता था। हुसैन किसी एक विशेष संप्रदाय के एक सामंती स्वामी का नाम नही है, लेकिन एक उदात्त और अटूट विचार का नाम है जिसे अपनाने वाला हुसैनी है चाहे उसका संबंध किसी भी विचारधारा के स्कूल से हो।

अंत में उन्होंने कहा कि अशूरा के दिन इमाम ज़माना (अ.) की खिदमत में पुरसा अर्पण करते हुए प्रण लिया कि जब तक हमारी सांसें चल रही हैं, तब तक अजादारी ए इमाम हुसैन (अ.स.) और विलायत अली (अ.स.) पर किसी प्रकार का कोई समझौता नही किया जाएगा।

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